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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - ६ :
स्त्री प्रत्यय (लघुसिद्धान्तकौमुदी)

स्त्री प्रत्यय प्रकरण

प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।

१. अजा.

अज - 'स्त्रियाम्' सूत्र से 'अज' की स्त्री संज्ञा करने पर
अज - 'अनाघतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय
अज + आ - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व और पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर
अजा - पुनः 'अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् ' से प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
अजा + स् - 'हल्ङयाब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करने पर
अजा - यह रूप सिद्ध हुआ।

२. लावणिकी

लवण + ठञ् - प्रथमान्त लवण शब्द से तदस्य पण्यम् के अर्थ में लवणाट्ठञ् सूत्र से तद्धित संज्ञक ठञ् प्रत्यय आया।
लवण + ठ - ठञ् का अनुबन्ध लोप होकर ठ हुआ
- कृत्तद्धितसमासाश्च से प्रातिपदिक संज्ञा
- स्वौजसमौट०' से सु आदि प्रत्यय
लवण + ठ + सु - प्रथमा विभक्ति एकवचन की विवक्षा में सु आया।
लवण + ठ + स् - उपदेशऽजनुनासिक इत् से ड की इत्संज्ञा
लवण + ठ - हलङ्याब्भ्यो दीघात् सुतिस्य पृक्तंहल से अपृक्त सकार का लोप
लवण + इक् - ठस्येकः से ठकार को इक् आदेश
लावण + इक् - किंचित से आदि वृद्धि।
- पचि भम् से लावण की भ संज्ञा
लावण + इक् - यस्येतिच से भ संज्ञक अकार का लोप
लावणिक + ङीप् टिड्ढाणञ्... ० से ठञ् प्रत्ययान्त लावणिक को ङीप प्रत्यय
लावणिक + ई - ङीप् के अनुबंधों का लोप होकर ई शेष
लावणिक् + ई - लावणिक के भ संज्ञक आकार का लोप
- ङयाप्प्रातिपदिकात्' से प्रातिपदिक का अधिकार
स्वौजसमौट्० से सु आदि प्रत्यय
लावणिकी + सु - प्रथमा विभक्ति एकवचन की विवक्षा में सु आया
लावणिकी + स् - उपदेशेऽजनुनासिक इत् से सु के उकार की इत्संज्ञा
लावणिकी - हलङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यपृक्तं हलं से अपृक्त सकार का लोप होकर लावणिकी सिद्ध हुआ।

३. एडका

एडक - 'स्त्रियाम्' सूत्र से 'एडक' की स्त्री संज्ञा करने पर
एडक - 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय
एडक + आ - 'अकः सवर्णे दीर्घः से पूर्व और पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर
एडका - 'अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् ' से प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
एडका + स् - 'हलङयाब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करने पर
एडका - यह रूप सिद्ध हुआ।

४. त्रिलोकी

त्रिलोक + ङीप् - द्विगु स्त्रीत्व की विवक्षा में द्विगो: सूत्र से ङीप् प्रत्यय हुआ।
त्रिलोक + ई - 'ङीप्' के 'प्' की 'हलन्त्यम्' सूत्र से ङ' की 'लशक्वतद्धिते' सूत्र से इत्संज्ञा होकर तस्यलोपः' से लोप।
त्रिलोक + ई - 'यस्येति च' सूत्र से 'पचिभम्' से भसंज्ञक अन्त्य अकार का लोप
त्रिलोकी + सु - 'ङयाप्प्रातिपदिकात्' 'प्रत्ययः' परश्च के अधिकार से प्रथमा एकवचन की विवक्षा में 'स्वौजसमौट्' इत्यादि सूत्र से सु प्रत्यय आया।
त्रिलोकी + सु - 'सु' के 'उ' की 'उपदेशऽजनुनासिकइत्' सूत्र से इत्संज्ञा तथा तस्यतोप:' से लोप।
त्रिलोकी - 'हलङ्याब्भ्यो दीर्घात सुतिस्यपृक्तं हल्' सूत्र से 'स्' का लोप होकर रूप सिद्ध हुआ।

५. चटका

चटक - 'स्त्रियाम्' सूत्र से 'चटक' की स्त्री संज्ञा करने पर
चटक - 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय
चटका + आ - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व और पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर
चटका - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
चटका - यह रूप सिद्ध हुआ।

६. गोपी

गोपी + ई - च गोप शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'पुंमोगादारूपायाम्' सूत्र से ङीष तथा अनुबन्ध लोप होकर तथा अकार लोप होकर वर्ण सम्मेलन तथा प्रातिपदिक संज्ञा - विभक्ति कार्य होकर गोपी बना।

७. मूषिका

मूषिक - 'स्त्रियाम्' सूत्र से 'मूषिक' की स्त्री संज्ञा करने पर
मूषिक - 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय
मूषिक + आ अकः सवर्णे दीर्घः से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ स्वदेश होकर।
मूषिका - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा होने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
मूषिका + स् - स्- 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करने पर
मूषिका - यह रूप सिद्ध हुआ।

८. रुद्राणी

रुद्र + अमुग + ङीष - रुद्र शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए इन्द्र तरुण
रुद्र + आन + ई भव सर्व० सूत्र से अनुग् एवम् ङीष हुआ और
रुद्र + अण + ई अनुबन्ध - अनुबन्ध लोप हुआ। यहाँ पर दीर्घ सकार को णकार वर्ण सम्मेलन प्रातिपदिक संज्ञा तथा विभक्ति कार्य होकर रुद्राणी बना।

९. यूनस्तिः।

व्याख्या - 'युवन्' शब्द से स्त्रीलिंङ्ग में 'ति' प्रत्यय होता है। 'ति' प्रत्यय तद्धित संज्ञक है, अतः 'कृत्तद्धितसमासाश्च' से 'युवति' शब्द की प्रातिपदिक संज्ञा होकर 'सु' आदि प्रत्यय होते हैं।

१०. बाला

बाल - 'स्त्रियाम्' सूत्र से 'बाल' की स्त्री संज्ञा करने पर
बाल - 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय
बाल + आ - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व-पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर
बाला - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
बाला + स् - ‘हलङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करने पर
बाला - यह रूप सिद्ध हुआ।

११. श्वश्रूः

श्वसुर + ऊङ् - श्वशुरस्योकाराकारलोपश्च वार्तिक से श्वशुर शब्द से स्त्रीलिंग में ऊङ् प्रत्यय होता है।
श्वश्र + ऊ - तथा इसी वार्तिक से ही शकार ये परे 'उकार' का और रेफ से परे 'अ' का लोप तथा ङ को हलन्त्यम् से इत्संज्ञा तथा तस्यलोपः से लोप
-ङयाप्प्रातिपदिकात् से प्रातिपदिक का अधिकार
- स्वौजसमौट्० से सु आदि प्रत्यय
श्वश्रूः - सु का रुत्व विसर्ग होकर श्वश्रूः सिद्ध हुआ।

१२. भवन्ती

भवत् - 'स्त्रियाम्' सूत्र से शतृ प्रत्ययान्त 'भवत्' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
भवत् - 'उगितश्च' ङीप (ई) प्रत्यय
भवत् + ई - 'शरश्यनोर्नित्यम्' से नुम् (न्) आ अणम
भवन्ती - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
भवन्ती + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप करने पर
भवन्ती - यह रूप सिद्ध हुआ।

१३. अश्वा

अश्व + टाप् - अश्व शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए अजाद्यतष्टाप् से टाप प्रत्यय, अनुबन्ध
अश्व + आ - लोप होने पर अकः सवर्णे दीर्घा से होकर अश्वा बना, प्रातिपदिक संज्ञा तथा विभक्ति कार्य होने पर यह रूप हुआ।
१४. दीव्यन्ती
दीव्यत् - 'स्त्रियाम्' सूत्र से शतृ प्रत्ययान्त 'दीव्यत्' की स्त्री संज्ञा करने पर
दीव्यत् - 'उगितश्च' से ङीप (ई) प्रत्यय
दीव्यत् + ई - ' शप्श्यनोर्नित्यम्' से नुम् (न्) आगम
दीव्यन्ती - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय।
दीव्यन्ती + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप करने पर
दीव्यन्ती - यह रूप सिद्ध हुआ।

१५. कुमारी

कुमार + ङीप् - तयसि प्रथमें इस सूत्र से ङीष् प्रत्यय हुआ। अनुबन्ध लोप होकर
कुमार + ई - अकार लोप होकर वर्ण सम्मेलन हुआ प्रातिपदिक संज्ञा तथा विभक्ति कार्य होकर कुमारी बना।

१६. कुरुचरी

कुरुचर - 'स्त्रियाम्' सूत्र से टित् प्रत्ययान्त 'कुरुचर' की स्त्री संज्ञा करने पर
कुरुचर '- टिड्ढाणञ्द्वयसज' से ङीप् (ई) प्रत्यय
कुरुचर + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
कुरुचरी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
देवी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करने पर
देवी - यह रूप सिद्ध हुआ।

१७. नारी

नृरी शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए नृनरयोर्वृद्धिर इस गण सूत्र से त्रकार को आर् वृद्धि और ग्रीन् प्रत्यय तथा अनुबन्ध लोप होकर।
नर् + ई - यहां पर वर्ण सम्मेलन तथा प्रातिपदिक संज्ञा और विभक्ति होकर नारी बना।

१८. कुरुचरी

कुरुचर - 'स्त्रियाम्' सूत्र से टित् प्रत्ययान्त 'कुरुचर' की स्त्री संज्ञा करने पर
कुरुचर - 'टिड्ढाणञ्वयसज०' से ङीप् (ई) प्रत्यय
कुरुचर + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
कुरुचरी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय।
कुरुचरी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप होने पर
कुरुचरी - यह रूप सिद्ध हुआ।

१९. युवती:

युवन् - 'स्त्रियाम्' सूत्र से 'युवन' की स्त्री संज्ञा करने पर 'यूनास्ति:' से ति प्रत्यय
युवन + ति नः लोपः प्रातिपदिकान्तस्य' से नकार का लोप होकर
युवति पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्० से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय।
युवति + स्- 'ससजुषो रु' से सकार को रु (र)
युवतिर् - 'खरवसानयोर्विसर्जनीयः' से रेफ को विसर्ग करके
युवति: - यह रूप सिद्ध हुआ।

२०. सुजधना

सुजधन + आ - सुजधन शब्द को स्त्रीलिंग बनाने के लिए यहाँ पर अजा छित टाप् से टाप् प्रत्यय हुआ अनुबन्ध लोप होकर अतः सवर्ण दीर्घ में दीर्घ तथा प्रातिपदिक संज्ञा और स् लोप होकर सृजधना बना।

२१. देवी

देव - 'स्त्रियाम् ' सूत्र से टित् प्रत्ययान्त 'देव' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
देव - टिड्ढाणञ्द्वपसज्० से ङीप् (ई) प्रत्यय
देव + ई - 'पस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
देवी - पुनः प्रतिपादिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट. से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय देवी + स् - 'हलङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से तकार को लोप करने पर
देवी - यह रूप सिद्ध हुआ।
२२. तरुणी
तरुण + ङीप् - तरुण शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के अज् स्रत्रीकक्
तरुण + ई - स्पंस्तरुणतलुनाना मुपसंख्यानम् सूत्र से ङीप प्रत्यय
तरुण + ई - अनुबन्ध लोप होकर और अकार होकर वर्ण सम्मेलन प्रातिपादिक संज्ञा और विभक्ति का कार्य होना
तरुनी - यह रूप सिद्ध होता है।

२३. सौपर्णेयी

सौपर्णेय - 'स्त्रियाम्' सूत्र से ढ प्रत्यपान्त सौपर्णेय शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
सौपर्णेय - 'टिड्रढाणञ्वयसज्०' से ङीप् (ई) प्रत्यय
सौपर्णेय + ई - 'यायेति च' से अन्त्य अकार का लोप करने पर
सौपर्णेयी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
सौपर्णेयी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करने पर
सौपर्णेयी - यह रूप सिद्ध होता है

२४. कोकिला

कोकिला + टाप् - कोकिल शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए अजादितठराप् से अनुबन्ध लोप अकः सवर्णे दीर्घः से दीर्घ होकर
कोकिल + टाप् आ - अनुबन्ध लोप होकर, प्रातिपादिक संज्ञा तथा विभक्ति कार्य होकर कोकिल यह रूप सिद्ध होता है।

२५. ऐन्द्री -

ऐन्द्र - 'स्त्रियाम्' सूत्र से अण् प्रत्ययान्त ऐन्द्र शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
ऐन्द्र - 'टिड्ढाणद्वयसज्०' से ङीप् (ई) प्रत्यय
ऐन्द्र + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करने पर
ऐन्द्री - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय।
ऐन्द्री + स 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप करने पर
ऐन्द्री यह रूप सिद्ध हुआ।

२६. ब्राह्मणी

ब्राह्मण - स्त्रियाम् सूत्र से 'ब्राह्मण' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
ब्राह्मण - 'शार्ङ्गखाद्यञो ङीन्' (ई) प्रत्यय
ब्राह्मण + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
ब्राह्मणी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय ब्राह्मणी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप करके
ब्राह्मणी - यह रूप सिद्ध हुआ।

२७. सूर्या -

सूर्य + आ - सूर्य शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए सूर्यात देवतायाम् चाप्
सूर्या - वाच्यः इससे चाप प्रत्यय हुआ अनुबन्ध लोप होकर सवर्णे दीर्घः होकर प्रातिपदिक संज्ञा होकर विभक्ति कार्य होकर यह सूर्या रूप सिद्ध हुआ।

२८. सूरी

सूर्य + ई - सूर शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए पुंयोगादाख्यायाम् सूत्र से ङीस् प्रत्यय और अनुबन्ध लोप होकर यस्येतिच के अकार और पकार लोप होकर वर्ण सम्मेलन, प्रातिपदिक सूर्या होकर विभक्ति होकर सूरी बना।

२९. स्त्रैणी

स्त्रैणः - स्त्रियाम् ' सूत्र से नञ् प्रत्ययान्त 'स्त्रैण' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
स्त्रैण नञ् - स्नञ्-ईकक् ख्युन्- तरुण-तलुनानाम् उपसंख्यानम् वार्तिक से ङीप् (ई) प्रत्यय स्त्रैव + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप होकर
स्त्रैणी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
स्त्रैणी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप होने पर
स्त्रैणी - यह रूप सिद्ध होता है।

३०. अतिकेशा

अतिकेश + आ अतिकेश शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'स्वाङगच्चोपसर्जनाद०' सूत्र से वैकल्पिक टाप् प्रत्यय हुआ अनुबन्ध लोप होकर दीर्घ प्रातिपदिक संज्ञा और विभक्ति कार्य होकर अंतिकेशा रूप बना।

३१. पौंस्नी

पौंस्न - 'स्त्रियाम्' सूत्र से स्नञ् प्रत्ययान्त 'पौंस्न' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
पौंस्न - नञ् - स्नञ्-ईकक् ख्युन्- तरुण-तलुनानाम् उपसंख्यानम् वार्तिक से ङीप (ई) प्रत्यय पौंस्न + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
पौंस्नी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन की विवक्षा में सु (स्) प्रत्यय
पौंस्नी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप होने पर
पौंस्नी - यह रूप सिद्ध होता है।

३२. तटी

तट + ई - तट शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'जातेरस्त्रिविषयाद्योपधात्' सूत्र से तटी ङीप् प्रत्य हुआ, अनुबन्ध लोप होकर एवं अकार लोप होकर वर्ण सम्मेलन होकर प्रातिपदिक संज्ञा तथा विभक्ति कार्य होकर 'तटी' बना।

३३. गार्गी

गार्ग्य - स्त्रियाम् - सूत्र से यञ् प्रत्ययान्त 'गार्ग्य' शब्द से स्त्री संज्ञा करने पर
गार्ग्य - 'यञश्च' से ङीप (ई) प्रत्यय
गार्ग्य + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप होकर
गार्ग्य + ई - 'हलस्तद्धितस्य' से पकार का लोप करने पर
गार्गी - पुनः प्रातिपादिक संज्ञा करके 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय गार्गी + स - हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् से सकार का लोप होकर
गार्गी - यह रूप सिद्ध हुआ।

३४. अश्वपालिका

अश्वपालक + टाप् - अश्वपालक से स्त्रीलिंग बनाने के लिए पालकान्तात्ना सूत्र में ङीस प्रत्यय नहीं होने दिया।
अश्वपालक + आ - अजादितस् से टाप् हुआ अनुबन्ध लोप 'प्रापयस्थात् कात् पूर्वस्यात् इदारयसुपः ल् में अका अकः सवर्णे दीर्घः से दीर्घ प्रातिपदिक संज्ञा विभक्ति कार्य आदि होकर
अश्वपालिका रूप बना।

३५. गार्ग्यायणी

गार्ग्य - 'स्त्रियण' सूत्र से यञ् प्रत्ययान्त 'गार्ग्य शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
गार्ग्य - 'प्राचां ष्क तद्धितः' से विकल्प से 'ष्फ' (फ) प्रत्यय
गार्ग्य + फ - 'आयनेमीनोपिप: फढरवट्ट्यां प्रत्ययादीनाम्' से फ के स्थान पर आयन् आदेश होकर
गार्ग्य + आयन - 'यस्येति च' से 'गार्ग्य' के अन्त्य अकार का लोप होकर
गार्ग्यायन - 'अट् कुप्वाङनुमव्ययवायेऽपि' से नकार का णकार होकर
गार्ग्यायण - षिद् 'गौरादिभ्यश्च' से ङीप् (ई) प्रत्यय होकर
गार्ग्यायण + ई - से अन्त्य अकार का लोप करके
गार्ग्यायणी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा को एकवचन की विवक्षा में सु (स्) प्रत्यय
गार्ग्यायणी + स् - 'हल्डयाब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप होकर
गार्भ्यायणी - यह रूप सिद्ध हुआ.

३६. हिमानी

हिम + आन् + ई - हिम शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए इन्द्र वरुन भव० सूत्र से आयुग और डीस् अनुबन्ध होकर सवर्ण दीर्घ और वर्ण सम्मेलन प्रातिपदिक संज्ञा तथा विभक्ति कार्य होकर | हिमानी बना।

३७. रोहिणी

रोहित - 'स्त्रियाम्' सूत्र से 'रोहित' शब्द की स्त्रीलिंग संज्ञा करने पर
रोहित - 'वर्णादनुदत्तात् तोपधात् तो नः से ङीप् (ई) प्रत्यय तथा तकार को नकार होकर
रोहित + ई - 'यस्येतिच' से अन्त्य अकार का लोप होकर
रोहिनी - 'अटकुरवाड्नुमव्य वापेऽपि' से नकार को णकार करने पर
रोहिणी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सुभ् प्रत्यय
रोहिणी + स् - ‘हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करके
रोहिणी - यह रूप सिद्ध हुआ।

३८. कारिका

कारक + टाप् - कारक शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'अजाधिष्टाप्' सूत्र से अनुबन्ध लोप होकर दीर्घ प्रत्यय स्पातकात् पूर्वस्यात्
कारक + आ - इस सूत्र से इकार होकरी वर्ण संयोम होकर प्रतिपदिक तथा विभक्ति
कारि + कारिका - कार्य होकर कारिका का यह रूप बनता है।

३९. नर्तकी

नर्तकी - 'स्त्रियाम् ' सूत्र से षित् प्रत्ययान्त 'नर्तक' की स्त्री संज्ञा करने पर
नर्तक' - 'षिद् गौरादिभ्यश्च' से ङीप् (ई) प्रत्यय
नर्तक + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
नर्तकी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा को एक वचन में सु (स्) प्रत्यय
नर्तकी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात०' से सकार का लोप होकर
नर्तकी - यह रूप सिद्ध हुआ।

४०. पचन्ती

पचत + ङीप् - पचत् शब्द से स्त्रीलिंग बनाने उगितश्च सूत्र से ङीप्
पचत + ई - प्रत्यय अनुबन्ध लोप तथा नु इनमें अनुबन्ध लोप होकर
पच् + न् + ई - प्रातिपदिक संज्ञा विभक्ति कार्य होकर पचन्ती रूप बना। ४१. यवनानी
यवन + आमुक + ङीप् - यवन शब्द से स्त्रीलिंग बनाने के लिए यतनालिलययाम्
यवन् + आन् + ई - सूत्र के ङीप और आनुक हुआ अनुबन्ध लोप होकर सवर्ण दीर्घ होकर सम्मेलन होकर प्रातिपदिक संज्ञा और विभक्ति कार्य होकर प्रातिपदिक संज्ञा और विभक्ति कार्य होकर यवनानी बना।

४२. गौरी

गौर - 'स्त्रियाम्' सूत्र से गौर शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
गौर - 'षिद् गौरादिभ्यश्च' से ङीष् (ई) प्रत्यय
गौर + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
गौरी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
गौरी + स् - हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करने पर
गौरी - यह रूप सिद्ध हुआ।

४३. वामोरूः

वामोस + उङ् - 'सहितशफलक्षण वामादेश्च' इस सूत्र से स्त्रीत्व की विवक्षा में 'ऊङ' प्रत्यय वामोरु + ऊ - ङ् की 'हलन्त्यम्' सूत्र से इत्संज्ञा तथा तस्यलोपः से लोप हुआ
वामोरू - अकः सवर्णे दीर्घः से सवर्ण दीर्घादेश
वामोरू + सु - 'ङयाप्प्रातिपदिकात्' 'प्राययः परश्च के अधिकार से प्रथमा एकवचन की विवक्षा में 'स्वौजसमौट्,' इत्यादि सूत्र से 'सु' प्रत्यय।
वामोरू : - 'सु' को रुत्व विसर्ग होकर यह रूप सिद्ध हुआ।

४४. चन्द्रमुखा

चन्द्रमुख + टाप् - ङीष् के अभाव पक्ष में स्त्रीत्व के द्योतन में 'अजाद्यतष्टाप्' सूत्र से 'टाप्'
प्रत्यय हुआ।
चन्द्रमुख + आ - 'टाप्' के अनुबन्धों का लोप हुआ।
चन्द्रमुखा अकः - सवर्णे दीर्घः सूत्र से स्वर्ण दीर्घादेश।
चन्द्रमुखा + सु - 'ङयाप्प्रातिपदिकात्' सूत्र से प्रथमा एकवचन की विवक्षा में 'स्वौजसमौट्०' इत्यादि सूत्र से सु प्रत्यय आया।
चन्द्रमुखा + स् - 'सु'के उकार का लोप हुआ।
चन्द्रमुखा - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यपृक्तं हल सूत्र से स् का लोप होकर रूप सिद्ध हुआ।

४५. एनी

एत - 'स्त्रियाम्' सूत्र से वर्णवाचक 'एत' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
एत - 'वर्णादनुदात्तात् तोपघात् तो नः' से ङीप (ई) प्रत्यय तथा तकार को नकार होकर एन + ई 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप
एनी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय एनी - यह रूप सिद्ध हुआ है।

४६. उरुदध्नी

उरुदध्न + ङीप - 'टिड्ढाणञ्वयसज्दहन..०' सूत्र से उरुदघ्न इस दहनच् प्रत्ययान्त अकारान्त प्रातिपदिक से स्त्रीत्व की विवक्षा में ङीप् प्रत्यय आया।
उरुदध्न + ई - लशक्वतद्धिते, हलन्त्यम्, तस्य लोपः
पचिभम्
उरुदध्न + ई - यस्येति च
उरुदध्नी + सु - ड्याप्रातिपदिकात स्वौजसमौट.
उरुदध्नी + स् उपदेशेऽजनुनासिक इत् तस्यलोपः
उरुदध्नी - हलङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्प पृक्तंहल रूप बना।

४७. एता

एत - 'स्त्रियाम्' सूत्र से वर्णवाचक 'एत्' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
एतं - 'वर्णादनुदात्तात, तोपघात तो नः' से ङीप प्रत्यय तथा तकार को नकार विकल्प से होता है। यहाँ इनके अभाव पक्ष में 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय होकर
एत + आ - अकः सवर्णे दीर्घः से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश करने पर
एता - पुनः प्रातिपदिकात संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स) प्रत्यय
एता + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात' से सकार का लोप करके।
एता - यह रूप सिद्ध हुआ

४८. सर्वा

सर्व + टाप् - अजाद्यतष्टाप से टाप् प्रत्यय आया।
सर्व + आ - चुटू, हलन्त्यम, तस्यलोपः
सर्वा - अकः सवर्णे दीर्घः से सवर्ण दीर्घ आदेश होकर
सर्वा + सु - ङ्याप्प्रातिपदिकात् से सु आया
सर्वा-स् -  सु के उ का लोप हुआ।
सर्वा -  हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्यपृक्तं हल से अपृक्त सकार लोप
सर्वा - यह रूप सिद्ध हुआ।

४९. रात्री

रात्रि - 'स्त्रियाम्' सूत्र से इञ् - प्रत्ययान्त 'रात्रि' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
रात्रि - 'कृदिकारादक्तिनः' वार्तिक की सहायता से 'ब्रह्मादिभ्यश्च' से ङीप् (ई) प्रत्यय
रात्रि + ई - 'पस्येति च से रात्रि के अन्त्य इकार का लोप करके
रात्री - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय रात्री + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप होकर
रात्री - यह रूप सिद्ध हुआ।

५०. मृद्वी

मृदु + 'स्त्रियाम्' - सूत्र से इञ् प्रत्ययान्त 'रात्रि' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
मृदु - 'वोतो गुणवचनात्' से ङीप् (ई) प्रत्यय
मृदु + ई - 'इको यणचि' से उकार को वकार होकर
मृद्वी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स) प्रत्यय
मृद्वी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप होकर
मृद्वी - यह रूप सिद्ध हुआ।

५१. क्षत्रिया

क्षत्रिय + टाप् - अजाद्यतण्टाप् से टाप् आया।
क्षत्रिय + आ - टाप् के अनुबन्धों का लोप
क्षत्रिया - अकः सवर्णे दीर्घः से सवर्ण दीर्घ
क्षत्रिया + सु - ङ्याय् प्रतिपदिकात से सु आफ
क्षत्रिया + स् - सु के उ का लोप
क्षत्रिया - हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् सुतिस्पपृक्तं हल् से स् का लोप।
क्षत्रिया - यह रूप सिद्ध हुआ।

५२. सर्विका

सर्वक - 'स्त्रियाम्' सूत्र से अकच् प्रत्ययान्त 'सर्वक' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
सर्वक - 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय
सर्वक + आ - प्रत्ययस्थात् वात् पूर्वस्यात् इदारसुपः से वकारोत्तरवर्ती अकार का लोप होकर सर्विक + आ - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व-पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर
सर्विका - पुनः प्रातिपदिकात् संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट.' से प्रथमा से एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
सर्विका + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप होकर
सर्विका - यह रूप सिद्ध हुआ।

५३. दाक्षी

दाक्षि - 'स्त्रियाम' सूत्र से इञ् प्रत्ययान्त मनुष्य जातिवाचक 'दाक्षि' शब्द की स्त्री संज्ञा करके दाक्षि - 'इतो मनुष्यजाते:' से ङीप् (ई) प्रत्यय
दाक्षि + ई - 'अकः सवर्णे दीर्घः से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर
दाक्षी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
दाक्षी + स् - हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् से सकार का लोप करके
दाक्षी - यह रूप सिद्ध हुआ।

५४. इत्वरी

यहाँ इण् धातु से 'इष्नशजिसर्तिभ्यः क्वरप्' प्रत्यय तथा तुक (त्) आगम।
इण् + क्वरप्
इण् + तुक + क्वाप्
इ + त् + वर - इत्वर शब्द बना इत्वर से टिड्ढाणम् ...०' सूत्र से ङीप (ई) प्रत्यय
इत्वर + ङीप् (ई)
इत्वर + ई - 'यस्येतिच' से अन्त्य
इत्वर् + ई - अकार का लोप
सुप्रत्यय तथा लोप होकर 'इत्वरी' रूप निष्पन्न हुआ।

५५. कुरु:

कुरु - 'स्त्रियाम् ' सूत्र से उकारान्त 'कुरु' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
कुरु - 'ऊङ् उत:' से ऊङ (ऊ) प्रत्यय
कुरू + ऊ - अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ - एकादेश होकर
कुरू - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्)
कुरू + स् - ससजुषो रुः से सकार का रु (र) होकर
कुरूर् - 'खरवसानपोर्वि सर्जनीयः' से रेफ को विसर्ग होकर
कुरू: - यह रूप सिद्ध होता है।

५६. चटका

चटक शब्द से अजाद्यतष्टाप् से टाप् प्रत्यय से आ शेष रहता है। सवर्ण दीर्घः सु प्रत्यय तथा सु का लोप होकर 'चटका' रूप बनता है।

५७. भवानी

भव - 'स्त्रियाम' सूत्र से भव 'शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
भव - 'इन्द्र-वरुण-भव-शर्व-रुद्र-मुड०' से ङीष् (ई) प्रत्यय तथा आनुक (आन्) का आगम
भव + आन् + ई - 'अकः सवर्णे दीर्घः से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घएकादेश होकर
भवानी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स) प्रत्यय भवानी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप होकर
भवानी - यह रूप सिद्ध हुआ।

५८. करभोरुः

करभौ इव ऊरु यस्याः सा इस विग्रह में उपमानवाची पूर्वपद 'करभ' तथा उत्तरपद ' ऊरु' युक्त 'करभोरु:' शब्द से ' ऊरुत्तर पदादौपम्पे' सूत्र के द्वारा स्त्रीत्व - बोधक 'ऊङ्' प्रत्यय होकर 'करभोरु + ऊ' तथा सवर्ण दीर्घ होकर 'करभोरु' शब्द बना। प्रातिपदिक संज्ञा इस परिभाषा के अनुसार'करभोरु' शब्द से सु प्रत्यय तथा उसे रुत्व व विसर्ग होकर 'करभोरु : ' रूप बनता है।

५९. मृडानी

मृड - 'स्त्रियाम्' सूत्र से 'मृड' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
मृड - 'इन्द्र- वरुण-भव - शर्व- रुद्र- मृङ' से ङीष् (ई) प्रत्यय तथा आनुक (भान्) का आगम।
मृड + आन + ई '- अकः सवर्णे दीर्घः से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर मृडानी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट० से प्रथमा के एकवचन में सु (स्)प्रापय
मृडानी - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार लोप होकर
मृडानी - यह रूप सिद्ध हुआ।

६०. वत्सा

यह अजादिगण में आने वाले 'वत्स्' शब्द से स्त्रीत्व अर्थ बोधन के लिए 'आद्यतष्टाप्' से टाप् प्रत्यय 'ट' तथा 'प' की इत्संज्ञा तथा लोप वत्स् + आ, इस स्थिति में सवर्ण दीर्घ होकर 'वत्सा' शब्द बना। प्रथमा के वचन एकवचन में सु प्रत्यय 'हल्ङ्याब्भ्यो दीघात् सुतिस्यपृक्तं हल' से सु का लोप होकर वत्सा रूप बनता है।

६१. मातुलानी

मातुल - 'स्त्रियाम्' सूत्र से मातुल शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
मातुल - मातुलोपाध्याययोरानुग्वा इस वार्तिक की सहायता से 'इन्द्र-वरुण-भव-शर्व-रुद्र- मृड०' से ङीप (ई) प्रत्यय तथा आनुक् (आक्) आगम
मातुल + आन + ई - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व - पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर
मातुलानी पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय।
मातुलानी + स् - 'हल्याभ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप होकर
मातुलानी - यह रूप सिद्ध हुआ।

६२. मनुषी

मनुषी (नारी) - मनुष्य शब्द से 'योपध....' इत्यादि वार्तिक के द्वारा ङीष् प्रत्यय होकर
मनुष्य + ई - 'यस्येति च' सूत्र से अकार का लोप तथा हलस्तद्धितस्य से यकार का लोप होकर 'मनुष्य + ई -,
मनुष् + ई- 'मनुषी' रूप बना
सु प्रत्यय तथा उसका लोप होकर 'मनुषी' रूप सिद्ध होता है।

६३. क्षत्रियाणी

क्षत्रिय - 'स्त्रियाम्' सूत्र से क्षत्रिय शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर 'अर्यक्षत्रियाभ्यां कास्वार्थे' वार्तिक की सहायता से इन्द्र- वरुण - भव- शर्व- रुद्र, मृङ' से ङीष् (ई) प्रत्यय और आनुक् (आन्) का आगम
क्षत्रिय + आन् + ई-  'अकः सवर्णे दीर्घः से पूर्वपर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर क्षत्रियानी - 'अटकुप्वाङ्नुमव्यपायेऽपि से नकार को णकार होकर
क्षत्रियाणी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
क्षत्रियाणी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप होकर
क्षत्रियाणी - यह रूप सिद्ध होता है।

६४. वस्त्रक्रीति

वस्त्रक्रीत ' - स्त्रियाम' सूत्र से अकारान्त पुलिंग 'वस्त्रक्रीत' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर वस्त्रक्रीत 'क्रीतात् करणपूर्वात्' से ङीष् (ई) प्रत्यय
वस्त्रक्रीत + ई - 'यस्चेति च' से अन्त्य अकार का लोप होकर
वस्त्रक्रीती - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौज स्मौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
वस्त्रक्रीती + स् - 'हल्ङयाब्भ्यो दीर्घात० से सकार का लोप होकर
वस्त्रक्रीती - यह रूप सिद्ध हुआ।

६५. मनुषी

मनुष्य - 'स्त्रियाम्' सूत्र से जातिवाचक पुल्लिंग 'मनुष्य' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
मनुष्य - योपधप्रतिषेधे हय - गवय-मुकप-मनुष्य-मत्स्यानाम प्रतिषेध वार्तिक से ङीष् (ई) प्रत्यय
मनुष्य + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
मनुष्य + ई - 'हलस्तद्धितस्य' से पकार का लोप होने पर
मनुषी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करके 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
मनुषी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप करके
मनुषी - यह रूप सिद्ध हुआ।

६६. अतिकेशी

अतिकेश - 'स्त्रियाम्' सूत्र से अकारान्त पुलिंग 'अतिकेश' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
अतिकेश - 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनात् असंयोगोपधात्' से ङीष् (ई) प्रत्यय
अतिकेश + ई - 'याचेति च' से अन्त्य अकार का लोप करके
अतिकेशी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में 'सु'
(स) प्रत्यय।
अतिकेशी + स् - हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ० से सकार का लोप करके।
अतिकेशी - यह रूप सिद्ध हुआ।

६७. गोपालिका

'गोपालस्य स्त्री' यहाँ पुंयोग होने के कारण 'पुंयोगादारव्यायाम्' सूत्र से ङीष् प्रत्यय प्राप्त था किन्तु गोपालक शब्द के पालकान्त होने के कारण ' पालकान्तान' वार्तिक के द्वारा ङीष् प्रत्यय का निषेध हो गया। अकारान्त होने के कारण 'गोपालक' शब्द से 'अजाद्यत्ष्टाप्' सूत्र के द्वारा टाप् प्रत्यय होकर- गोपालन + टाप्, गोपालक + आ तथा प्रत्यपस्थात्कात् पूर्वस्यात इदारयसुपः सूत्र के द्वारा अकार के इकार देश होकर गोपाल इक + आ गोपालिका शब्द बना। उयाप्प्रातिपदिकात् सूत्र के विधान से 'गोपालिका शब्द से प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सु' प्रत्यय होकर 'गोपालिका + सु तथा 'हल्ङयाब्भ्योदीर्घात्' सुतिस्पपृक्तंहल् सूत्र से 'सु' का लोप होकर गोपालिका रूप निष्पन्न होता है।

६८. चन्द्रमुखी

चन्द्रमुख - 'स्त्रियाम्' सूत्र से अकारान्त पुलिंग चन्द्रमुख शब्द से स्त्री संज्ञा करने पर
चन्द्रमुख - 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनाद् असंयोगोपधात्' से ङीष् (ई) प्रत्यय
चन्द्रमुख ई - यस्येति च से अन्त्य अकार का लोप करने पर
चन्द्रमुखी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट्०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
चन्द्रमुखी - स्-हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप करके
चन्द्रमुखी - यह रूप सिद्ध हुआ।

६९. कल्याण क्रोडा

कल्याणक्रोड - 'स्त्रियाम्' सूत्र से अकारान्त पुलिंग 'कल्याणक्रोड' शब्द से स्त्री संज्ञा करने पर कल्याणक्रोड - 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनाद् असंयोगोपधात्' से विकल्प से ङीष प्रत्यय प्राप्त होता है किन्तु 'न क्रोडादि वहवय:' से निषेध होकर 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् प्रत्यय
कल्याण + आ - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश करने पर कल्याणक्रोड़ा - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट.' से प्रथमा के एकवचन में सु
(स्) प्रत्यय
कल्याणक्रोड़ा + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप होकर
कल्याणक्रोड़ा - यह रूप सिद्ध हुआ।

७०. शूर्पणखा

शूर्पनख - 'स्त्रियाम् ' सूत्र से स्वाङ्गवाची 'शूर्पनख' शब्द से स्त्री संज्ञा करने पर
शूर्पनख - 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनाद् असंयोगोपद्यात्' से ङीष् प्रत्यय प्राप्त होता है किन्तु 'नखमुखात्
संज्ञायाम्' - से निषेध होकर 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) करने पर
शूर्पनख + आ - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश होकर
शूर्पनखा - 'पूर्वपदात् संज्ञायामगः' से नकार को णकार करके
शूर्पणखा - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट० से सु' (स्) प्रत्यय
शूर्पणखा + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप होकर
शूर्पणखा - यह रूप सिद्ध हुआ।

७१. गौरमुखा

गौरमुख - 'स्त्रियाम् ' सूत्र से स्वाङ्गवाची 'गौरमुख' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
गौरमुख - 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनाद् असंयोगोपधात्' से ङीष् प्रत्यय प्राप्त होता है
किन्तु 'नखमुखात्' संज्ञायान से निषेध होकर, 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय करने पर गौरमुख + आ - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश करके गौरमुखा पुनः प्रातिपदिकात् संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा को एकवचन (स्) प्रत्यय।
गौरमुखा + स् - 'हल्ङयाब्भ्यो दीर्घात् ०' से सकार का लोप होकर
गौरमुखा - यह रूप सिद्ध हुआ।

७२. मत्सी

मत्स्य - 'स्त्रियाम्' सूत्र से जातिवाचक पुल्लिङ्ग 'मत्स्य' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
मत्स्य - योपध प्रतिषेध हम - गवय - मुकय- मनुष्य-मत्स्यानामप्रतिषेध वार्तिक से ङीष् (ई) प्रत्यय मत्स्य + ई - 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करके।
मत्स्य + ई - 'मत्स्यस्य ङ्याम्' वार्तिक के पकार का लोप करने पर
मत्सी - पुनः प्रातिपदिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
मत्सी + स् - 'हल्ङ्याब्भ्यो दीर्घात्' से सकार का लोप करके
मत्सी - यह रूप सिद्ध हुआ।

७३. गौरी

यहाँ गौरादि गुण में आये हुए गौर शब्द से स्त्रीलिङ्ग में 'षिद्गोरादिभ्यश्च' से ङीष् प्रत्यय अनुबन्ध लोप गौर + ई, इस स्थिति में 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप तथा स्वादिकार्य होकर गौरी' रूप सिद्ध होता है।

७४. पङ्गः

पङ्ग - स्त्रियाम्' सूत्र से उकारान्त 'पङ्ग' शब्द की स्त्री संज्ञा करने पर
पडू - 'पङ्गोश्च' से ऊङ् (ऊ) प्रत्यय
पङ्गू + ऊ - 'अकः सवर्णे दीर्घः' से पूर्व पर के स्थान पर दीर्घ एकादेश करके
पङ्गू - पुनः प्रातिपादिक संज्ञा करने पर 'स्वौजसमौट०' से प्रथमा के एकवचन में सु (स्) प्रत्यय
पङ्ग + स् - 'ससजुषो रु' से सकार को रु (र)
पङ्गूर् - 'खखसानपोर्विसर्जनीयः से रेफ को विसर्ग होकर
पङ्गः - यह रूप सिद्ध हुआ।

७५. भवती

भवती - (होती है) भू धातु शतृ प्रत्यय शतृ में अत् शेष रहता है।
भू + शतृ
भू + अत् = सार्वधातुकार्धधातु कयोछ से गुण एचो. से. अवादेश होने पर
भो + अत्
भव + अत्
भवत् + हीप् - 'उगितश्च' से ङीप् (ई)
भवत + ई = प्रत्यय
भवती - यह रूप सिद्ध हुआ।

७६. सुजघना

सुजघन + टाप् = अजाद्यतष्टाप् से टाप् आया।
= स्वाङ्गच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात् से ङीष् की प्राप्ति लेकिन क्रोडादिबहच: से दीष् का निषेध
सुजघन + आ = टाप् के अनुबंधों का लोप
सुजघना = अकः सवर्णेदीर्घः से सवर्ण दीर्घ
सुजघना + सु = ङया-+प् ------० से सु आया।
सुजघना + स् = सु के ऽ का लोप
सुजघना = हलड्याभ्यो दीर्घात् सुतिस्यपृक्तं हल् से स् का लोप सुजघना यह रूप सिद्ध होता है।

७७. स्त्रियाम्।

व्याख्या - समर्थानां प्रथमाद् ४ / २ / ८२ इस सूत्र तक स्त्रीलिङ्ग का अधिकार है। कहने का आशय यह है कि पाणिनी 'अष्टाध्यायी' के चौथे अध्याय के प्रथम पाद के बयासी नम्बर के सूत्र तक स्त्रीलिङ्ग में प्रत्यय होते हैं।

७८. अजाद्यतष्टाप्।

व्याख्या - अज आदि शब्द और अकारान्त शब्दों का जो स्त्रीत्व वाच्य है उसे प्रकट करने के लिए टाप् प्रत्यय होता है। भाव यह है कि अज आदि तथा अकारान्त शब्दों से स्त्रीत्व को प्रकट करने के लिए टाप् प्रत्यय होता है। अजादिगण इस प्रकार हैं- अजा, एडका, अश्वा, चटका, मूषिका, बाला, वत्सा, होडा, मन्दा, विलाता आदि।

७९. उगितश्च।

व्याख्या - उगित् (जिसमें उ, ऋ और लृ हटे हैं) प्रत्यय अन्त वाले शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप प्रत्यय होता है। ङीप् में ङ् और प् में इत्संज्ञा तथा लोप होकर 'ई' शेष रहता है।

८०. टिडढाणञ्यसज्दघ्नञ्मात्रच्तयप्ठक्ठञ्कञ्क्वरपः।

व्याख्या - अनुपसर्जन (जो गौण न हो) जो टित् (ऐसे प्रत्यय जिनका टकार इत्संज्ञक है), ढ, अण्, अञ्, इयसच्, दघ्नञ्, माञच्, तयप्, ठक्, ठञ् और क्वरप् ये प्रत्यय हैं अन्त में जिसके ऐसे ह्रस्व अकारान्त प्रातिपदिक से स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है।

८१. यञश्च्

व्याख्या - यञ् प्रत्ययान्त शब्दों में स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है। अकारेति गार्ग + इ, इस स्थिति में 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप करने पर।

८२. हलस्तद्धितस्य।

व्याख्या - हल् (व्यञ्जन) से परे तद्धित के उपधा रूप में स्थित 'य' का लोप हो जाता है। ईकार परे होने पर किसी शब्द के अन्तिम वर्ण से पूर्व वर्ण की उपधासंज्ञा होती है। जैसे- गार्ग्य शब्द में अन्त्य वर्ण अ है उससे पूर्व वर्ण 'य' की उपधासंज्ञा होती है।

८३. प्राचां एफ तद्धितः।

व्याख्या - यञ् प्रत्ययान्त से विकल्प से स्त्रीलिंग में 'एफ' प्रत्यय होता है और वह तद्धित संज्ञक होता है।

एफ प्रत्यय के ष् की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है। 'फ' को आयन् आदेश होता है। एफ की तद्धित संज्ञा हो जाने से 'यस्येति च' में अकार का लोप और तद्धितान्त होने से प्रातिपदिक संज्ञा हो जाती है।

८४. षिद्गौरादिभ्यश्च।

व्याख्या - षित् (जिसमें ष् की इत्संज्ञा हुई हो) और गौरादि शब्दों से स्त्रीलिंङ्ग में ङीष् प्रत्यय होता है। ङीष् में ङ् और ष की इत्संज्ञा होकर ई शेष बचता है। गौरादिगण में गौर, मत्स्य, मनुष्य, शृङ्ग, पिङ्ग, हय, गवय, मुकय, ऋषय, डुण, सुषम, सूर्य, कन्दर, कदल, तरुण, तलुन, रेवती, रोहणी, पिप्पली, पितामह, मातामह, शिखण्ड आदि शब्द आते हैं।

८५. वसीय प्रथमे।

व्याख्या प्रथम (कुमार) अवस्था के वाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है।
वार्तिकार ने इस सूत्र पर 'वयस्यचरमे' यह वार्तिक लिखी है। जिसका आशय यह है कि वृद्धावस्था को छोड़कर अन्य अवस्थावाचक शब्दों से ङीप् प्रत्यय होता है। अतएव युवावस्थावाचक वधूरी और चरण्टी शब्द बनाते हैं।

८६. द्विगोः।

व्याख्या - अकारान्त द्विगु समास में ङीप् प्रत्यय होता है। जैसे- त्रिलोकी, त्रिफला, त्र्यनीका आदि।

८७. वर्णादनुदात्तात् तोपधात् तो नः।

व्याख्या - वर्णवाचक जो अनुदात्तान्त (अन्त में अनुदात्त है जिसके) और तोपध (जिसकी उपधा में त है) शब्द तदन्त अनुपसर्जन (जो गौण न हो) प्रातिपदिक से विकल्प से ङीप् प्रत्यय होता है और त को न हो जाता है।

८८. वोतो गुणवचनात्।

व्याख्या - उकारान्त गुणवाचक शब्द से स्त्रीलिंग में विकल्प से ङीष् प्रत्यय होता है। जैसे - मृद्वी, मृदुः (कोमल) आदि।

८९. बह्वादिभ्यश्च।

व्याख्या - बहु आदि शब्दों से स्त्रीलिंग में विकल्प से ङीष् प्रत्यय होता है। बह्वादिगण अञ्चति, अङ्कति, अंहति, शकटि, शारि, वारि, राति, राधि (शाधि) अहि, कपि, यष्टि, मुनि, अराल, कृपण, कमल, विकट, विशाल, विशङ्कट मरुजध्वज, कल्याण, उदर, पुराण, अहन्, कोड, नख, खुर, शिखा, बाल, शफ, गुदा इत्यादि शब्दों में रहता है।

९०. पुंयोगादाख्यायाम्।

व्याख्या - जो पुरुषवाचक शब्द लक्षण से (पुरुष के सम्बन्ध से) स्त्रीलिंग में आता है, उससे ङीष् प्रत्यय होता है।

९१. प्रत्ययस्थात् कात् पूर्वस्यात इदाप्यसुपः।

व्याख्या - प्रत्यय में स्थित ककार के पूर्व आकार को 'आप्' परे होने पर इकारादेश हो जाता है, यदि वह 'सुप्' से परे न हो। जैसे- गोपालिका, अश्वपालिका, सर्विका, कारिका आदि।

९२. इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलाचार्याणामानुक्।

व्याख्या - इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, रुद्र, मृड, हिम, अरण्य, यव, यवन, मातुल तथा आचार्य इन शब्दों से स्त्रीलिंग में 'आनुक्' का आगम होता है तथा 'ङीष्' प्रत्यय भी होता है। उ व क् का लोप हो जाता है। आन् शेष रहता है।

९३. क्रीतात् करणपूर्वात्।

व्याख्या - 'क्रीत' शब्द जिसके अन्त में है तथा 'करण' कारक है आदि में जिसके जैसे अकारान्त प्रातिपदिक से स्त्रीलिंङ्ग में 'ङीष्' प्रत्यय का विधान होता है, जैसे- धनक्रीता, वस्त्रक्रीती आदि।

९४. स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात्।

व्याख्या - जिसकी उपधा में संयोग नहीं है ऐसा उपसर्जन (गौण) स्वाङ्गवाची शब्द जिसके अन्त में हो उस अकारान्त प्रातिपदिक से विकल्प से 'ङीष्' प्रत्यय होता है।
स्वाङ्ग शब्द का यौगिक अर्थ 'अपना अङ्ग' (शरीर का अवयव) होता है किन्तु यहाँ पर इसका 'कशिका' में निर्दिष्ट पारिभाषिक अर्थ ही लिया गया है, स्वाङ्ग तीन प्रकार का होता है-

(१)
जो द्रव (तरल) रूप में न हो, मूर्तिमान् (साकार) हो, प्राणिमात्र में विद्यमान हो और किसी व्याधि (विकार) आदि से उत्पन्न न हुआ हो।

(२) जो सम्प्रति प्राणिमात्र में स्थित न हो अपितु प्राणिमात्र में देखा गया हो यथा - यदि किसी प्राणी के सुन्दर केश किसी गली में पड़े हों तो वहाँ इसी सूत्र से ही विकल्प से 'ङीष्' प्रत्यय होकर 'सुकेशा वा' यह होगा।

(३) यदि कोई अप्राणी भी प्राणी में स्थित किसी अङ्ग (स्तनादि) से उसी प्रकार युक्त हो जैसे प्राणी होता है, तो वह अप्राणी का स्वाङ्ग कहलायेगा। अतएव 'सुस्तनी सुस्तना वा' में भी उपर्युक्त सूत्र से ही विकल्प से 'ङीष् प्रत्यय होता है।

९५. न क्रोडादिबह्वचः।

व्याख्या - 'क्रोड' आदिगण के तथा जिसमें बहुत सारे अच् (स्वर) हों, ऐसे स्वाङ्गवाचीप्रातिपदिक से 'ङीष्' प्रत्यय का विधान नहीं होता है। जैसे - कल्याणक्रीडा, आकृतिगण, सुजघना आदि।

९६. नखमुखात् संज्ञायाम्।

व्याख्या - 'नख' तथा 'मुख' आदि स्वाङ्गवाची शब्दों से संज्ञा में 'ङीष्' प्रत्यय का विधान नहीं होता है।

९७. पूर्वपदात्संज्ञायामगः।

व्याख्या - पूर्वपद में स्थित निमित्त से परे वाले नकार को णकार आदेश हो जाता है संज्ञा में, किन्तु गकार के बीच में होने से यह आदेश नहीं होता है। जैसे- शूर्पणखा, गौरमुखा आदि।

९८. जातेस्त्रीविषयादयोपधात्।

व्याख्या - जो जातिवाचक शब्द स्त्रीलिंग में नियत न हो तथा जिसकी उपधा से यकार न हो, ऐसे जातिवाचक अकारान्त शब्द से स्त्रीलिंग में ङीष् प्रत्यय का विधान होता है। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त जातिवाचक शब्द पारिभाषिक है, जैसा कि कहा गया है

"आकृतिग्रहणा जातिः लिङ्गानां च न सर्वभाक्।
सकृदाख्यातनिर्ग्राह्या गोत्रं च चरणैः सह।। "

अर्थात् जाति तीन प्रकार की होती है-

(१) जो आकृतिविशेष से अभिव्यक्त की जाती है, यथा तरादि। आकृतिविशेष युक्त, जलसमीप का प्रदेश तट कहलाता है।

(२) जो समस्त लिङ्गों में व्याप्त न हो तथा एक व्यक्ति में बतला देने पर अन्यों में सुगमता से उसका ग्रहण हो जाए, जैसे- वृषल आदि।

(३) गोत्र अर्थात् अपत्यप्रत्ययान्त शब्द औपगव इत्यादि। 'चरण' अर्थात् शाखा के पढ़ने वाले के वाचक शब्द कठ आदि।

९९. इतो मनुष्यजातेः।

व्याख्या - 'मनुष्य' जातिवाची इकारान्त शब्द से स्त्रीलिंङ्ग में 'ङीष्' प्रत्यय का विधान होता है। जैसे- दाक्षी।

१००. ऊडुतः।

व्याख्या - 'उकार' अन्त्य वाले तथा उपधा में यकार से रहित मनुष्यजातिवाचक प्रातिपदिक से स्त्रीलिंग में 'ऊङ्' प्रत्यय का विधान होता है। जैसे - कुरुः।

१०१. पङ्गोश्च।

व्याख्या - 'पङ्गु' शब्द से स्त्रीलिंङ्ग में 'अङ्ग' प्रत्यय होता है। यह सूत्र 'ऊङुत: ' सूत्र से प्राप्त 'ऊङ्' प्रत्यय का अपवाद सूत्र है। 'पंङ्गु' शब्द के जातिवाचक न होने के कारण ही 'पङ्गोश्च' सूत्र के द्वारा 'ऊङ्' प्रत्यय का विधान किया गया है, जैसे- 'पंङ्गु'।

१०२. ऊरूत्तरपदादौपम्ये।

व्याख्या - उपमानवाची पूर्वपद वाले तथा 'उरु' शब्द उत्तरपद वाले प्रातिपदिक से स्त्रीलिंङ्ग में 'ऊङ्' प्रत्यय का विधान होता है। जैसे - करभोरु: आदि।

१०३. संहितशफलक्षणवामादेश्च।

व्याख्या - सहित, शफ, लक्षण तथा 'वाम' शब्द हो पूर्वपद (आदि) में जिसके तथा 'उरु' शब्द हो उत्तरपद जिसका - ऐसे प्रातिपदिक से भी स्त्रीलिंग में 'ऊङ्' प्रत्यय का विधान होता है। यह सूत्र अनौपम्य के लिये है अर्थात् जहाँ पूर्वपद उपमानवाची न हो, वहीं पर 'ऊङ्' प्रत्यय का विधान करने के लिये है। जैसे - संहितोरुः, शफोरुः, लक्षणोरुः, वामोरु: आदि।

१०४. शार्ङ्गरवादेरञो ङीन्।

व्याख्या - शार्ङ्गरवादेरजो आदि शब्दों से तथा अञ् प्रत्यय का जो आकार है, वह है अन्त में जिसके ऐसे जातिवाचक शब्दों से 'ङीन्' प्रत्यय का विधान होता है। जैसे- शार्ङ्गरवी, वैदी, ब्राह्मणी आदि।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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